स्वदेशी अपनाए, भारत को विश्वगुरु बनाए : अमन कुमार | Aaryavarta Insider

बागपत | हमारे संवाददाता
माइंडसेलो संगठन के जिलाध्यक्ष व प्रतिष्ठित युवा समाजसेवी अमन कुमार ने लोगों से स्वदेशी अपनाओ विचारधारा के आधार पर स्वावलंबी बनने की अपील की है। उन्होंने कहा कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है. अगर हमने अब भी स्वदेशी को नहीं अपनाया तो आने वाली पीढ़ियां आर्थिक संकट झेलने को मजबूर हो जाएंगी। 

पत्रकारों से वार्ता में अमन ने कहा कि इतिहास गवाह है कि पहले व्यापार के नाम पर भारत में एक कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी आई और उसने पूरे देश को गुलाम बना लिया। वर्तमान में भारत में हजारों विदेशी कंपनी व्यापार कर रही है। भारतीय मार्केट और रुपए की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमत विदेशी कंपनियों के हाथो में है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम रुपए के अवमूल्यन को बचाए और स्वदेशी से स्वावलंबी के पथ को अपनाए।

अंग्रेजों के आने के पहले भारत के सभी गांव पूर्णरूप से स्वावलम्बी थे। अंग्रेजों ने कई कानून बना कर भारत की ग्रामीण कृषी व्यवस्था, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, ग्रामीण कारीगरी आदि को खत्म कर दिया। भारत की खेती अब विदेशी ज्ञान और तकनीकी पर आधारित हो गई है। जिसके चलते खेतों में यूरिया, डीएपी, सुपर फास्फेट और रासायनिक कीटनाशकों का ज़हर भर गया है। धरती की धमनियों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के ज़हर का इतना असर हुआ है कि हमारे भोजन में भी यह ज़हर पहुंच चुका है। हमारा खून तक ज़हरीला हो गया है।

गांव में अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से टूट जाने का दुष्परिणाम यह है कि रोज़गार के सभी अवसर गांवों में समाप्त हो रहे हैं। भारतीय नागरिक गांव से पलायन कर के शहरों की तरफ दौड़ रहे हैं। गांव खाली हो रहे हैं। शहरों में भीड़ बढ रही है, जो झुग्गी-झोपड़ियों और मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर हैं। अतः भारत के गांवों में ऐसी व्यवस्थाएं खड़ी करनी होंगी जो हमारी धरती को रासायनिक खाद और कीटनाशकों के ज़हर से बचा सके और किसान की खेती को स्वावलम्बी बना सकें। स्वच्छ अन्न खाने से लोगों की मानसिकता भी शुद्ध होगी। गांवों की अर्थव्यवस्था का भी पुनःनिर्माण इस तरह से करना होगा कि रोज़गार के अवसर गांवों में ही विकसित हो सकें और धन का प्रवाह गांवों की ओर हो सके।

अमन ने कहा कि आज़ादी के 65 वर्षों के बाद भी हम भारतवासी विदेशी भाषा, विदेशी भूषा, विदेशी भोजन, विदेशी दवाई और विदेशी वस्तुओं का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। इसके कारण देश का लाखों करोड़ों रूपया भारत से बाहर जा रहा है। अपने आत्म सम्मान को स्वदेशी के द्वारा ही पुनःजीवित किया जा सकता है।

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