कोरोना वायरस : प्रकृति का श्राप (हरित कुमार) | Aryavarta Insider

मनुष्य को शुरू से ही रात के तारों ने आकर्षित किया है। मनुष्य की इसी जिज्ञासा का परिणाम है कि हमने मंगल तक अपना अधिकार जमाने की कोशिश की है। लेकिन यह खोज अभी भी अधूरी है और कभी पूरी नहीं होने वाली। जैसे पाप का घड़ा कभी नहीं भरता और पहले ही फूट जाता है।
मैं क्या लिखूं और कैसे अपने मन में चल रहे उद्वेग को शांत करूं? इसको लेकर थोड़ा विचलित हूं क्यूंकि आज जिस बात की अनुभूति मुझे हुई है वह साधारण बात तो नहीं है। यह विचार तरंगे वास्तव में विश्व बदल देने वाली है।

हम बचपन से किताबों में पढ़ते आए है कि मानव गलतियों का पुतला है अर्थात् गलतियों को करके ही मानव सीखता है और आगे बढ़ता है। यह बात जीवन के सभी आयामों में लागू होती है लेकिन यदि हम इसे विज्ञान के क्षेत्र में देखे तो हम एक विचित्र तथ्य से रूबरू होते है कि टेक्नोलॉजी के नाम पर व मनुष्य अपने सुख के नाम पर न जाने कितनी भौतिक वस्तुओं का निर्माण कर चुका है।

यह तथ्य मेरे अंतर्मन में इस विचार का प्रतिनिधित्व करता है कि हम विज्ञान और आधुनिकता के नाम पर अपने अनंत से शून्य तक के सफर को तय कर रहे है अन्य कुछ नहीं। हम विज्ञान के अनुसार अंधकार से प्रकाश में जा रहे है लेकिन हम प्रकाश से अंधकार की ओर अग्रसर है।

मैं मानता हूं कि विज्ञान एक डेस्ट्रक्टिव लरनिंग है अर्थात हम चीजों को नष्ट करते है और सीखते है। लेकिन आज मैं इस सच से रूबरू हुआ कि हम सीखते बहुत कुछ है लेकिन उसको सहेज कर ही रख लेते है और व्यर्थ का जो ज्ञान सीखते है उसको ही प्रयोग में लाते हैं।

प्राचीन समय में हमारे पूर्वजों ने विज्ञान का पर्याप्त विकास कर लिया था। उन्होंने जान लिया था कि ब्रह्मांड का अस्तित्व उनके स्वयं के अंदर है और उन्होंने तप के माध्यम से बिना प्रकृति को नुक्सान पहुंचाए बहुत सी खोजे की। इस तथ्य की गहराई में अब हमको जाने की जरूरत है और उस विज्ञान को पुनः जागृत करने का समय है। 

वर्तमान में मुझे आत्मग्लानि होती है कि मानवता, जिसका नाम सुनकर मन में दया का भाव जागृत होता है, वो आज कितनी क्रूर हो चली है। हम विज्ञान के माध्यम से इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके है कि विज्ञान के अत्यधिक विकास से हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे है। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए हम प्रकृति के साथ क्रूरता से खेल रहे है लेकिन जाने अनजाने में अपने लिए कोरोना वायरस जैसी समस्याओं को भी लगातार आमंत्रित करते जा रहे है। 

इस लेख को पढ़कर भी क्रूर मानवता 5 जी जैसी खतरनाक चीजों का विकास करने में वागर है। मानव खुद को सभी जीवित प्राणियों से श्रेष्ठ जो समझता है। इसलिए वो कभी भी खुद को गलत नहीं कहेगा। वो कभी स्वीकार न करेगा कि हम गलत है और विज्ञान का जरूरत से ज्यादा विकास हमारे लिए कोरोना वायरस आदि के रूप में एक श्राप की तरह सामने आता जाएगा।

देखना बाकी है कितने मानव इस विचार की गहराई में जाकर चिंतन करके सम्पूर्ण मानवता के सुधार हेतु आगे आते है और प्राचीन ग्रंथों में निहित विज्ञान द्वारा शून्य से अनंत के पथ पर अग्रसर होते है।


Previous Post Next Post

Contact Form