स्वदेशी से स्वावलंबन की और बढ़ते कदम... हरित कुमार | आर्यावर्त इनसाइडर

Aryavarta Insider
दैनिक अखबार, टीवी चैनल, महान हस्तियों के व्यक्तिगत साक्षात्कार उनके सुझाव और समर्थन की एक सूची और दूसरी और पर्दे के पीछे का सच...।

मैं अक्सर टीवी नहीं देखता है। मेरा मानना है कि टीवी में मनोरंजन के नाम पर हमारे दिमाग की प्रोग्रामिंग की जाती है जिसपर मैं व्यक्तिगत सर्वे भी कर चुका है। लेकिन कल मेरे एक अजीज ने मुझे संपर्क किया और हाल ही में स्वदेशी को लेकर जो विचारधारा लोगों के बीच चली है, उसके विषय में मुझे विस्तार से जानकारी दी।
मैंने उन लोगों के इतिहास की जानकारी लेना आरंभ किया जो अक्सर स्वदेशी स्वदेशी किया करते है और जिनसे प्रेरित होकर हमारे देशवासी किसी विचारधारा को आत्मसात किया करते है। इस दौरान मेरा वाकया कुछ दोगले लोगों से भी हुआ जो स्वदेशी का दिखावा और विदेशी सामान का उपयोग किया करते है। हम स्वदेशी अपनाओ विचारधारा को बढ़ावा तो दे रहे है लेकिन हम कहीं ना कहीं विदेशी चीज़ों को अपनाने का जब भी मौका मिलता है तो हम खुशी खुशी उसको अपनाते है। एक और विडम्बना यह भी है कि हम विदेशी चीजों को बेहतर मानते है क्योंकि उनमें विकसित टेक्नोलॉजी का प्रयोग होता है। लेकिन हम जीरो टेक्नोलॉजी वाले सामानों के मामले में भी विदेशी चीजों पर निर्भर है।

अगर हम बिल्कुल मूल पर जाते है तो स्वदेशी के प्रति इस उदासीनता को बढ़ावा जब मिला जब सरकार ने विदेशी कंपनियों को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी। तब से विदेशियत के रंग में हम रंगे जा चुकी है। वर्तमान स्थिति यह है कि हम भारत की वस्तुओं को खराब गुणवत्ता और विदेशी कंपनियों की वस्तुओं को उत्तम गुणवता वाला मानते हैं। केवल स्वदेशी का नारा ना लगाकर यदि सरकार विदेशी कम्पनियों का भारतीय मार्केट में व्यापार को लेकर कडे नियम और शर्ते बनाए तो स्वदेशी कंपनियों को प्रोत्साहन मिलेगा साथ ही भारत केवल विदेशियों के लिए लोगों पर एक शोध केंद्र ना बनाकर स्वदेशी की मान्यता के आधार पर प्रगति की और अग्रसर होगा।

इसके लिए अन्य कुछ आपेक्षित सुधार हमारी शिक्षा व्यवस्था में हो सकते है जिसको मैकौले ने केवल इसलिए बनाया था ताकि हम अपनी ही चीजों को तुच्छ समझने लगे और उनकी चीजों को उत्तम समझे। शिक्षा व्यवस्था में कुछ सुझाव होने चाहिए जैसे हमको विदेशी लुटेरों को नायक बताकर पढाने के बजाय अपने भारतीय इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम अंकित कराने वाले शूरवीरों को पढ़ाया जाना चाहिए एवं विज्ञान के क्षेत्र में भारत का अमूल्य योगदान भारत के भविष्य के नायकों को बताया जाना चाहिए ताकि उनमें एक अलग ही स्तर का आत्मविश्वास पनपे और वो गर्व से खुद को भारतीय कहे। स्वदेशी को गर्व से अपनाए।

अभी कोरोना वैश्विक संकट का एक अन्य रूप आर्थिक युद्ध के रूप में सामने आया है। यदि इस युद्ध में विजय चाहिए तो स्वदेशी से स्वावलंबी होने के पथ को अपनाना होगा। तभी हम रूपए और डॉलर के बीच के अंतर को भी दूर कर पाएंगे। हमारे देश की अर्थव्यवस्था बरे दौर से गुजर रही है. अगर हमने अब भी स्वदेशी को नहीं अपनाया तो आने वाली पीढ़ियां आर्थिक संकट झेलने को मजबूर हो जाएंगी।

अंग्रेजों के आने के पहले भारत के सभी गांव पूर्णरूपेण स्वावलम्बी थे। अंग्रेजों ने कई कानून बना कर भारत की ग्रामीण कृषी व्यवस्था, ग्रामीण अर्थव्यवस्था, ग्रामीण कारीगरी आदि को खत्म कर दिया। भारत की खेती अब विदेशी ज्ञान और तकनीकी पर आधारित हो गई है। जिसके चलते खेतों में यूरिया, डीएपी, सुपर फास्फेट और रासायनिक कीटनाशकों का जहर भर गया है। धरती की धमनियों में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के जहर का इतना असर हुआ है कि हमारे भोजन में भी यह जहर पहुंच चुका है। हमारा अस्तित्व तक जहरीला हो गया है। इस पर हमारे पूर्वजों ने भी कहा है - जैसा खाए अन्न, वैसा होवे मन। जो अप्रत्यक्ष रूप से मानवता के क्रूर होने का कारण है। इसी वजह से समाज में अपराध भी बढ़ते जा रहे है।

गांव में अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से टूट जाने का दुष्परिणाम यह है कि रोजगार के सभी अवसर गांवों में समाप्त हो रहे हैं। भारतीय नागरिक गांव से पलायन कर के शहरों की तरफ दौड़ रहे हैं गांव खाली हो रहे हैं। शहरों में भीड़ बढ रही है, जो झुग्गी-झोपड़ियों और मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर हैं। अतः भारत के गांवों में ऐसी व्यवस्थाएं खड़ी करनी होगी जो हमारी धरती को रासायनिक खाद और कीटनाशकों के जहर से बचा सके और किसान की खेती को स्वावलम्बी बना सकें। गांवों की अर्थव्यवस्था का भी पुनःनिर्माण इस तरह से करना होगा कि रोजगार के अवसर गांवों में ही विकसित हो सके और धन का प्रवाह गांवों की ओर हो सके।

आजादी के 73 वर्षों के बाद भी हम भारतवासी विदेशी भाषा, विदेशी भूषा, विदेशी भोजन, विदेशी दवाई और विदेशी वस्तुओं का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। इसके कारण देश का लाखों करोड़ों रुपया भारत से बाहर जा रहा है। अपने आत्म सम्मान को स्वदेशी के दवारा ही पुनःजीवित किया जा सकता है।
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