राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ द्वारा श्री मान मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली को मेल द्वारा पत्र भेजकर संविधान के अनुच्छेद - 14 समानता के अधिकार के मौलिक अधिकार को पूर्ण रूप से लागू कर निचले वर्गों को बराबरी में लाने के लिए प्रभावी रूप से लागू कराकर व्यवस्था देने हेतु मांग की गई है।
पत्र में लिखा है कि महोदय संविधान के अनुच्छेद - 14 समानता के मौलिक अधिकार जिसमें समाज के निचले /कमजोर वर्ग को बराबरी देने को कहा गया है। इन्हें आर्थिक, शैक्षिक, राजनैतिक व सामाजिक चारों मापदंडों में सुविधाओं की व्यवस्था करना निहित है।
|-अतएव शैक्षिक क्षेत्र में उनके पाल्यों को सभी स्तरीय उच्च शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा आदि उपलब्ध कराना।
||-लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता के अन्तर्गत देश में सभी स्तर की नौकरी उपलब्ध कराते हुए जीवन स्तर ऊपर उठाना।
|||-राजनैतिक क्षेत्र में - विधायिका एवं संसदीय क्षेत्रों में विशेष भागीदारी देकर राजनैतिक क्षेत्र में बढावा देकर बराबर लाने प्रयास करना और बनाए जाने वाले कानूनों में कमजोरों के हकों के प्रति सचेत रह जनहित में कार्य करना।
||||-उपरोक्त सुविधाएं प्रदत्त कर सामाजिक स्तर में बढोतरी कर बराबरी तक आने के लिए उनके सभी अनु0-14 में निहित प्रावधानों को दिलवाने की व्यवस्था मिलना आवश्यक है। ताकि निचले तबके के नागरिकों को देश के विकास में अपना योगदान देने और देश की मुख्य धारा में शामिल होने का अवसर मिल सके।
आगे कहा गया है कि
महोदय, चूंकि मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण को मौलिक अधिकार की श्रेणी में होने से इंकार किया है जो स्वागत योग्य है। किन्तु अनुच्छेद - 14 समानता का अधिकार मौलिक अधिकार है। जिसमें अनु0-14 से 32 तक में विभिन्न सुविधाओं की व्याख्या दी गई है।
श्री मान जी, आपके संग्यान में लाना चाहता हूं कि संविधान में कमजोर वर्गों को ऊपर लाने हेतु आयोगों के गठन कर उनकी अनुशंसाओं के आधार पर भी कई प्रकार की सुविधाएं देने हेतु कयी अनुच्छेद वर्णित हैं। परन्तु दुर्भाग्य ही रहा कि इन वर्गों की सभी सरकारों ने उपेक्षा की। और उन्हें ऊपर उठाने के नाम पर सिर्फ उपहास जैसी क्रिया की गई है।जिसका जिक्र करना समीचीन ही होगा। यथा-
सर्व प्रथम 29/1/1953 को काका कालेलकर आयोग का गठन कर इस हेतु कार्य दिया गया। जिसने 30 मार्च 1955 को अपनी अनुशंसा रिपोर्ट सरकार को सौंपी। किन्तु उन्हें लागू न कर ठंडे बस्ते में डाल दिया। जिसे 1978(23)वर्ष तक भी लागू नहीं किया जा सका।
पुनः 20/12/1978 को वी पी मण्डल आयोग गठित हुआ जिसने अपनी रिपोर्ट 1980 में सरकार को सौंप दी। किन्तु इन्हें भी 1980 से 1989 तक फ्रिज कर दिया गया। और जब 1989 में मा0 बी0 पी0 सिंह सरकार ने वी पी मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की कोशिश की तो समूचे विपक्ष ने विरोध कर देश में अराजकता का माहौल तैयार कर विरोध किया। तभी
इस प्रकरण श्री इन्द्र साहनी ने मा0 सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया। जिसका फैसला 1993 को आया। जिसमें मा0 न्यायालय ने अनुसूचित जाति को 15%,अनुसूचित जनजाति को 7.5%तथा पिछङे वर्ग हेतु 27%आरक्षण की व्यवस्था दी। अर्थात कुल में 49.5%आरक्षित कर 50.5%अनारक्षित किया जबकि तत्कालीन समय भी देश में 54%पिछङों की जन संख्या थी।
पत्र में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि
दुर्भाग्य यह है कि 28 वर्ष बाद आज तक भी वी पी मण्डल आयोग की अनुशंसाओं को पूर्ण रूप से जनता के लिए लागू नहीं किया गया है। अर्थात मण्डल आयोग का लागू न होना संविधान के अनुच्छेद - 14 की खुली अवमानना है जिसका मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कभी संग्यान नहीं लिया गया। और न ही इस हेतु कोई दिशा निर्देश जारी किया गया जिससे मा0 सर्वोच्च न्यायालय और सरकारों की सामाजिक सामाजिक समानता (अनु0-14) मौलिक अधिकार के प्रति कोई संवेदना होना प्रतीत नहीं होता।
अत: ऐसे में राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ मांग करता है कि संविधान के अनुच्छेद - 14 समानता के मौलिक अधिकार का लाभ देश के निचले /कमजोर वर्ग - दलित, शोषित, वंचित, व पिछङे वर्ग /जातियों को सभी राज्यों में दिलवा कर उपरोक्त विषय में मा0 सर्वोच्च न्यायालय स्वत:संग्यान लेते हुए समानता के अधिकार में अनु0-14 से 32 तक वर्णित कमजोर वर्ग के हितार्थ दी गई आर्थिक, शैक्षिक, राजनैतिक व सामाजिक (चारों मापदंडों) को मजबूत करने सम्बन्धी सभी व्यवस्थाओं को तत्काल प्रभाव से भारत सरकार के माध्यम से कङाई से अनुपालन /लागू कराने की कृपा करें।
संगठन ने पत्र की प्रतिलिपि महामहिम राष्ट्रपति महोदय भारत सरकार, मा0 लोकसभा अध्यक्ष, भारत सरकार, श्री मान प्रमुख सचिव गृह मंत्रालय भारत सरकार, प्रमुख सचिव उ0प्र0 सरकार, व मा0 नेता प्रतिपक्ष को सूचना एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजी गई है।